Tuesday 12 November 2013

नियम सिर्फ रस्म अदायगी के लिये

              भारत में नियम अब मात्र रस्म अदायगी के लिए ही रह गये है।  राजस्थान सरकार ने तम्बाकू इस्तेमाल करने वालों को सरकारी नौकरी न देने का फैसला किया है , यानि कि वो लोग जो सरकारी नौकरी करना चाहते है उन्हें तम्बाकू उत्पादों से अब दूर रहना पड़ेगा।  
                                                                       

  उन्हें अब ऐसा शपथ पत्र देना पड़ेगा जिसमे उल्लेख होगा कि वह तम्बाकू , गुटखा , बीड़ी -सिगरेट आदि जैसी चीजों से दूर रहेंगें।  राज्य सरकार से  ऐसी सिफारिश तम्बाकू विरोधी समन्वय समिति ने कि थी।  जिसके आधार पर राजस्थान सरकार ने यह फैसला किया।  फैसला तो कर दिया है लेकिन इस कानून का उल्लंघन करने वाले कि क्या सजा होगी ? अभी यह  तय नही हुआ है।
                                                                         राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार देश में लगभग 6.2 5 करोड़ शराबी , 90 लाख भांग , 2 . 5 लाख ओपिअट्स और लगभग 1 0 लाख अवैध नशीली दवाओं के उपयोगकर्ता है।
          तम्बाकू के इस्तेमाल पर नियंत्रण का इरादा तो ठीक है लेकिन एक बार इस तरह के नियम बंनाने से पहले सरकार को एक बार इस आदेश के व्यावहारिकता पर सोचना जरुर चाहिए था।  इससे पहले रेलवे में भी तम्बाकू सेवन पर प्रतिबन्ध लगाया था लेकिन क्या हुआ आज भी रेलगाड़ियों व स्टेशनों में बेखौफ तम्बाकू उत्पाद प्रयोग किये जा रहें हैं।  यहाँ पर तो सजा का भी प्रावधान है लेकिन कभी सुना है कि किसी को बीड़ी या मसाला या फिर सिगरेट पीने के लिए 2 साल की सजा या फिर 15 जेल में रहना पड़ा है।  हाँ यह जरुर है कि रेलवे द्वारा पाबंदी की वजह से रेलगाड़ियों व स्टेशनों पर तम्बाकू उत्पादों  का इस्तेमाल होना कम हो गया है लेकिन गौर किया जाये तो राज्य सरकार की पाबंदी का असर इससे भी कम होगा।
                                                                      असर कम इसलिए भी होगा क्योंकि दफ्तर तो केवल छः या आठ घंटे का ही होता है दफ्तर के बाद वह क्या करते है , उस पर कौन नजर रखेगा।  वह तो आराम से दफ्तर के बाद तम्बाकू का उपयोग कर सकेंगें।  लोग शपथ पत्र भर तो  देंगे लेकिन करेंगें वही जो वह चाहते है।  इससे लोगों को अहसास हो जायेगा कि सरकार नियम सिर्फ कागजों व रस्म अदायगी के लिए ही बनाती है।
                                                         
 

सरकार को चाहिये की किसी भी तरह के नियम को बनाने से पहले वह यह सुनिश्चित कर ले कि वह उस नियम को किस प्रकार जनता से पालन करवायेगें क्यों कि ऐसा न करने से सिर्फ सरकार कि ही छवि ख़राब नही होगी बल्कि साथ ही साथ वह दूसरे नियमों को भी गंभीरता से नही लेंगें।
                              तम्बाकू सेवन पर प्रतिबन्ध करने कि यह पहल अच्छी है लेकिन किसी से केवल एक कागज पर लिखवा लेना कि वह ऐसा नही करेंगें , इतना मात्र उचित नही है।  यह तो सिर्फ रस्म अदायगी हो जायेगी।
                                                            

Saturday 14 September 2013

मीडिया की सौगात ........

दिल्ली दुष्कर्म कांड  में अभिलिप्त उन चारों दरिंदों को जो सजा मिली ( फांसी ) है उसमे आज पूरा देश दशहरे के त्यौहार से पहले ही दशहरा जैसा जश्न मना रहा है और यह सौगात कहीं न कहीं मीडिया की देन हैं।  वह मीडिया जिसने उस समय इस कांड को समाचार चैनलों में 24 घंटे अपने खबरों में दिखाया फिर उस समय सचिन रिटायर हुए या दबंग ने 200 करोड़ कमाए।  मोदी हारे या जीते  ………… शीला रहे या जाये   ……दुनियां रहे या ख़त्म हो  , किसी भी खबर को जगह न देकर उसी को खबर बनाये रखकर एक आन्दोलन की अलख को जगाये रखने में सहायता की।
                                              वो आन्दोलन जो सामूहिक बलात्कार के बाद राजधानी दिल्ली की रायसीना हिल्स से लेकर इंडिया गेट तक फैले राजपथ पर देखने को मिला  , उसमे न तो कोई नेता था और न तो  कोई अभिनेता।  न कोई अन्ना हजारे थे और न कोई आमिर खान।  यदि कुछ थी तो वो युवा एकता थी जो नये ज़माने की मीडिया  " सोशल मीडिया  " की  देन थी जो बात तो एक लाइन में करता है लेकिन इस एक  लाइन का असर देश की सरकार तक को हिला देती है।
                                                                      इसलिए  आज एक सलाम हमारी मीडिया के नाम।  

Friday 21 June 2013

                                  मर्द को भी दर्द होता है .....







एक पुरानी कहावत है कि मर्द को दर्द नही होता है। यह कहावत पुराने समय के पुरुषों  के लिए तो सही थी लेकिन वर्तमान समय के पुरुषों  के लिए ठीक नही है क्योंकि आज ठीक इसका उल्टा हो रहा है मर्द को भी दर्द होता है मेरे यारों.
 आप सब जानना चाहते होंगें कि ऐसा कैसे हो सकता है और खासकर मेरे पुरुष मित्र जरुर सोच रहे होंगें तो मै बताती हूँ कैसे मर्द को भी दर्द होता है।आप सब याद करो।जब आपकी स्टूडेंट लाइफ थी तब कभी आप चार दोस्तों के साथ बैठे होंगे और बातों ही बातों में बात छिड़ी होंगी शादी की और जाहिर सी बात है की सबकी राय अलग -अलग होगी लेकिन उनमे से कोई एक दोस्त यह जरुर कहता होगा की यार !  "शादी के लड्डू जो खाए वो भी पछताए और जो न भी खाए वो भी पछताए "।  
                                                                अब आप सब कहेंगे इसमें नया क्या है ? यह बात तो हुई है दोस्तों के साथ एक बार नही कई बार हुई है जब हम गपशप किया करते थे तो यह बात हो ही जाया करती थी। आखिर तुम बताना क्या चाहती  हो आकांक्षा , तो ठीक है न .....यार इसी बहाने पुराने दिन याद करा  दिया मैंने, अच्छा तो अब सुनो कैसे मर्द को भी दर्द होता है।
अभी  कुछ दिनों पहले मै अपने शहर (कानपुर ) के परिवार परामर्श केंद्र में गयी थी वहां पर परिवार (पति -पत्नी ) में होने वाले झगड़ों को सुलझाया जाता है। वहां पर पति - पत्नी जिसको भी एक - दूसरे से परेशानी हो वो वहां पर  जाकर अपनी समस्या दर्ज कराते हैं।आप सोच रहे होंगे की वहां पर तो महिलाएं ही जाती होंगी जो अपने पतियों से पीड़ित होंगी तो आप गलत है क्योंकि आज केवल महिलाएं ही पुरषों से पीड़ित नही है बल्कि पुरुष भी महिलायों से पीड़ित हैं। 
मैंने परिवार परामर्श केंद्र के रजिस्ट्रेशन वाले रजिस्टर में जब शिकायते देख रही थी तो मैंने पाया की इस वर्ष जनवरी से लेकर मई तक 322 शिकायते दर्ज हुई थी और उनमें से 113 शिकायते तो उन पुरुषों ने दर्ज करवाई थी जो अपनी पत्नी से पीड़ित है यानि की 40% पुरुष अपनी पत्नियों से पीड़ित हैं। समाज में केवल महिलाएं ही बेचारी नही है , कुछ पुरुष भी ऐसे है जो बेचारे हैं। वो भी उन महिलाओं की तरह ही दया के पात्र हैं। 
                                                                  
वैसे तो मैंने वहां पर बहुत  से केस पढ़े जिनमें पुरुषों ने अपनी पत्नियों के खिलाफ  दर्ज कराया था लेकिन मै उनमे से दो केस के बारे में आपको बताती हूँ पहला केस -........ कानपुर के नवाबगंज में रहने वाले अमित ने शिकायत दर्ज करवाई है कि एक दिन उनकी पत्नी ने ऑफिस जाने से पहले उनसे कहा कि वो ऑफिस जाते टाइम रास्ते में ही दो मूवी की टिकटे ले ले हुआ यूं कि वो ऑफिस जाने के जल्दी - जल्दी में रास्तें में टिकट लेना गये भूल जो की यह आज के अधिकतर पतियों की निशानी हैं। जब अमित घर वापस आयें तो आप समझ सकते है हर पत्नी की तरह ही उनकी पत्नी ने भी एक गिलास पानी देने की जगह उनसे टिकटों के बारें में पूछ लिया होना क्या था फिर वही घमासान युद्ध और युद्ध के बाद उनकी बीवी ने उन्हें खाना खुद बना कर खाने को कह दिया। अमित ने सोचा आज पारा हाई है श्री मती जी का आज कैसे भी गुजारा कर लिया जायें फिर कल जब पारा कम हो जायेगा तब मना लिया जायेगा लेकिन उनका परा तो दिन बर दिन हाई होता गया अमित को 
एक हफ्ते बाहर लंच और डिनर करना पड़ा और उपर से पत्नी साहिबा ने बोलना भी बंद कर दिया। 
ऐसे ही दूसरी कहानी है कर्नलगंज के ताहिर की उनके साथ क्या समस्या है सुनो जरा .........शादी के दूसरे दिन से ही पत्नी साहिबा ने माँ बाप से अलग होने की बात करने लगी। जब तक माँ बाप से अलग नही हुए तब तक दिन रात वही झगड़ा फसाद , खुदखुशी करने की धमकी , आखिरकार उन्होंने हार मान ही ली और अपने माँ बाप के घर के पास में ही किराये पर रहने लगे लेकिन खाना वो अपने माँ बाप के घर पर खाने जाते थे जिससे उनकी पत्नी जी नाखुश थी। एक दिन जब ताहिर ऑफिस चले गये तभी उनकी पत्नी साहिबा घर में रखे सारे जेवर और 9 0 हजार रुपये लेकर मायके को फुर्र हो गयी। और वहां से आने का नाम नही ले रही हैं। 
                           
ऐसे बहुत  से लोग है जो पत्नी प्रताड़ित है जिनकी पत्नियाँ  दिन रात उनका  शारीरिक व मानसिक रूप से  शोषण  कर रही हैं।यह तो मैंने केवल आपको दो उदाहण मात्र दिए हैं। आपके आस पास भी ऐसे व्यक्ति होंगे या फिर शायद आपके ही कोई दोस्त हो जो रोज आपसे अपनी पत्नी के  कारनामे बताते थकते नही होंगे और आप सुनते।  समाज में सबकी सोच है की केवल महिलाएं ही सब कुछ शहती  है  ,  उनके ऊपर  ही अत्याचार उनके अंदर  ही केवल दिल हैं। समाज में पुरुषों की कोई बात ही नही करता , अगर करता भी है तो केवल यही की अरे यार फला फला अपनी पत्नी को पीटता है , केवल और केवल बुराई जैसे की मर्दों के अंदर दिल होता ही नही है , जैसे उनको दर्द नही  होता वो इंसान ही नही है।  
                                                         

आप लोगो का क्या सोचना है इस बारे में क्या वास्तव में मर्दों को दर्द  नही होता  हैं।    


 

Wednesday 2 January 2013

नई दामिनियों का जन्म

दामिनी  की  कुर्बानी  के  बाद  भी  आज  भी  समाज  की  स्थिति  वही  की  वही  है। कल और  आज  में कोई  अंतर  नही  है। कल  एक दामिनी  ने कुर्बानी  दी। आज कई  दामिनि कुर्बानियां  दे रही  है .समाज  में वें  केवल 6 दरिंदे ही नही है उनकी  ही  तरह  और  भी दरिंदे  है। जिनकी  वजह से  आज  हर  पल  , एक  ही  समय  पर कई  दामिनी पैदा हो रही  है। कल  जिस  दामिनी  का  हमने  अंतिम  संस्कार  किया  वह  एक  अकेली  दामिनी  नही थी  ,उसी  की तरह  कल  भी  कई  दामिनी  थी।
कहा  जाता  है  कि  वक्त  बड़ा  पहलवान  होता  है। सभी  काम  सही समय  आने  पर  ही  होते  है।  अब  तक  जितनी  लडकियों  का  बलात्कार  हुआ  उन  घटनाओ ने  समाज  को  उतना  नही  झकझोरा  था  जितना  की  दामिनी  की  घटना  ने झकझोरा  है।भले  ही  इस  घटना  ने  उन  जैसे  समाज  में  फैले  दरिंदों  के  अंदर  डर  न  पैदा  किया  हो  आज  भी  उन  जैसे  दरिन्दे  अपनी  दरिंदगी  को  दिखाने   में  कोई  हिचक  न  रखते  हो  लेकिन  कम  से  कम  उस घटना  ने  या   उस दामिनी  की   क़ुरबानी ने  समाज  में  रहने  वाले  उन  लोगो  में  से  कुछ  लोगो  को तो  प्रभावित किया  है जो  सरे  राह  हो  रहे  छेड़ छाड़   को   तमाशे  की  तरह  देख कर  चलता  बनते  है।  आज  कहीं  न  कहीं कुछ  लोगो  के  अंदर  हिम्मत आई है की  वो  अपने  सामने  हो  रहे  इस  तरह  की  घटना  को  रोक  सके  और  साथ  ही साथ  सोचने  पर  भी  मजबूर  कर   दिया  है  कि  जिस  तरह  वह  आज  किसी  की बेटी को  तमाशा  बनते  देख  रहे  और  वो  कुछ  नही  कर   रहे  है  ठीक  वही  घटना   कल  को  उनकी  बेटी  के  साथ  भी  हो  सकती  है। 
खैर  समाज  में  फैली  यह बुराई  इतनी  जल्दी  नही  मिटने  वाली  है। इस बुराई की  जड़  भी  उतनी  ही  गहरी  है  जितनी  की  रिश्वत  और  अन्य  घोटालो  की  है। 
सरकार  फ़ास्ट  ट्रैक कोर्ट  बनाने  की  या  तो  कही  नये  कानून  बनाने  की  बात  कर  रही  है  लेकिन किसी ने अभी  हो  रही  घटनाओ  के  लिए  कुछ  नही  सोचा  है। आज  भी  कहीं  न   कहीं   हर  समय  कोई  न  कोई लड़की  किसी  दरिंदे  की  हवश  का  शिकार  बन  रही  है।


           नई दामिनियों  का जन्म 


 राजस्थान के एक  गांव में   एक युवक ने  नाबालिग  लड़की को बंधक बनाकर दो दिन तक उसके साथ बलात्कार किया।घटना के बाद पीड़ित लड़की ने आग लगाकर खुदकुशी की कोशिश की। पीड़ित लड़की 70 फीसदी से ज्यादा जल चुकी है और फिलहाल अजमेर के एक अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है। लड़की की हालात नाजुक बताई जा रही है।


पंजाब के होशियारपुर में छेड़खानी का विरोध करने पर कुछ लड़कों ने दो बहनों की जमकर पिटाई की। पीड़ित लड़कियों के मुताबिक ये लड़के पिछले 4 महीने से उन्हें तंग कर रहे थे।

श्रीनगर में ट्यूशन पढ़ने जा रही एक लड़की पर तेजाब फेंका गया दो लड़कों ने उस लड़की पर इसलिए तेजाब फेंक दिया क्योंकि वो उसकी होने जा रही शादी से नाखुश थे।

हरियाणा के रेवाड़ी शहर में एक युवक ने  अपने ही रिशतेदार की  युवती को बेहोश करके दुष्कर्म किया और उसे गोली मारकर घायल कर दिया। घायल का अस्पताल में इलाज  अभी भी चल रहा है।


उस दामिनी के बाद भी यदि आज हमारे सामने इतनी सारी दामिनी खड़ी है तो यह समाज , यह सरकार , और वो नारा जिसमे यह कहा गया कि दामिनी हम तुम्हारी कुर्बानी बेकार नही जाने देंगे सब बेकार है , सबका होना और न होना बराबर है।
आज हर पल इतिहास अपने आपको दोहराह रहा है और कोई कुछ नही कर पा रहा है। 
और यह इतिहास आगें न दोहराया जाएँ इसके लिए कानून के साथ ही साथ समाज में रहने वालों को चाहिये की वह अपने सामने होने वाली  इस तरह की घटना को रोकने के किये आगे बढ़े।बल्कि यह सोच कर पीछे न हट जाएँ कि कौन सी वो लड़की उनकी बेटी या बहन नही है जो वो इन सब झगड़ो में पड़े।
दोस्तों आपको क्या लगता है सिर्फ कानून बन जाने से ही इन दरिंदो को इस समाज से हटाया जा सकता है ? 


Saturday 29 December 2012

इस देश न आना लाड़ो

आज एक बाप का आंगन  खाली हो गया ,वो आँगन जंहा पर दामिनी नाम की चिड़ियाँ हमेशा गुनगुनाती , फुदकती और चहकती रहती थी .
 एक बाप की आँखों ने जहाँ उस चिड़ियाँ को बड़ा होता देखा , सपने देखे की एक दिन वह चिड़ियाँ डॉक्टर बनकर, सफ़ेद कपड़े पहनकर  उनके सामने खड़ी  होगी, वहीं वह चिड़ियाँ आज सफ़ेद कपड़े  पहनकर खड़ी  तो हैं लेकिन डॉक्टर के नही , कफ़न का .
  



जंहा एक बाप के आँखों में आंसू होते हैं अपनी बेटी को ससुराल विदा करने के , वहीं आज उस बाप के आँखों में आंसू तो है लेकिन अपनी बेटी को ससुराल के लिए विदा करने के नहीं बल्कि इस दुनियां से विदा करने के .
आज जंहा  एक माँ के आंखो में अपनी बेटी को डॉक्टर बनता देख कर ख़ुशी के आंसू होते वहीं आज उस माँ के आँखों में पश्यताप के आंसू हैं क्यों नही वो अपनी बेटी उन भेडियों से बचा पायी जिस तरह वह अपनी बेटी को 9 महीने खोक में रखकर सभी तरह की बुरी नजरो व बलाओ से बचाया करती थी .
उस माँ का केवल यही है अपनी बेटी से कहना  - इस देश न आना लाड़ो
                                                                        इस देश न आना लाड़ो
                                                                        इस देश न आना लाड़ो ....................................
हम सब लड़कियां भी कल की दामिनी बन सकते है और न बने इसीलिए जरूरी हो गया हैं न्याय मिलना .और न्याय के लिए जरुरी है आवाम की आवाज का एक होना व सशक्त होना . न्याय केवल उन दरिंदो को  सजा मिलने से पूरा नही होगा . न्याय हमे व दामिनी को तब मिलेगा जब रेपिस्ट और खुनी लोगो को अपने देश में नेता नही बनाया जायेगा .जब हमारे देश के नेता और अन्य   विभाग के कर्मचारी  ही खुनी व रेपिस्ट है तो समाज में ऐसे भेडियों  का होना बना रहेगा , जिस तरह दीवाली पर घर की पूरी तरह  सफाई की जाती है ठीक उसी तरह अब जरूरत है सरकार से लेकर पुलिश  व अन्य विभागों में सफाई की .अब पूरी तरह से सफाई करने का समय है .  आप सभी क्या कहना है ?

Tuesday 18 December 2012

पंख दे दो , मुझे उड़ना है



पंख दे दो , मुझे उड़ना है  ऐसा कहना है अठ्ठारह वर्षीय श्रेया सिंह का और केवल श्रेया की ही ये दिली तमन्ना नही है बल्कि यह तमन्ना भारत में रहने वाले करोड़ो विद्यार्थियों की है, जिनके सपनो को इंतजार हैं  की उन्हें भी पंख मिलेंगे उड़ने के लिए  .
श्रेया का यह कहना उन आला संस्थानों या कॉलेजों से है जंहा 95%  अंक के बाद भी विद्यार्थियो के लिए कॉलेज के दरवाजे बंद  है .  श्रेया सिंह ने वे सारे काम नही किये जो उसे करने चाहिए थे . उसने टेलीविज़न नही देखा , दोस्तों के साथ बाहर मौज -मस्ती नही करने गयी , घर से बाहर निकलना बंद कर दिया , हर रोज 8 घंटे पढाई की और 12वीं  की क्लास में 95% अंक हासिल किये . श्रेया को विश्वाश था कि उसके शानदार अंको की वजह से उसे दिल्ली विश्व विद्यालय के टॉप कॉलेज में दाखिला मिल जायेगा .
लेकिन श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स ने जब अपनी कट ऑफ लिस्ट जारी  की और 98.80% की बेहद ऊँची सीमा बांध दी तो वह परेशान हो गयी . श्रेया ने निराश होकर ऐसे कॉलेज में दाखिला लेना पसंद किया जंहा पर उसे अपना पंसदीदा विषय पढ़ने  के लिए मिल जाये .इस तरह हताश होने वाली वह इकलौती  विधार्थी नही थी . ऐसे और भी विधार्थी है जो हताश हो चुके है इस शिक्षा प्रणाली से .
 एक ओर  जंहा शिक्षा के मानक आसान कर  दिए गये है वहीं अंक बढ़ा दिए गये है . अब तो देखा- देखी  में अन्य बोर्डों ने भी सीबीएससी बोर्ड की तरह अंधे होकर अंक देने  शुरू  कर दिए . परिक्षा का अब कोई महत्व ही नही रह गया है अब तो होनहार विधार्थियों  के साथ -साथ कमजोर विधार्थियों के भी 75% अंक देखने को मिल जाते है .परीक्षा  में मिलने वाले अंक , अंक न होकर मंदिर में मिलने वाला  प्रसाद हो गया है . सबसे बड़ी बात तो यह है की आज स्कूल और कॉलेज ऐसे खुल रहे है जैसे नुक्कड़ -नुक्कड़ पर पान - मसाले के दुकान खुली  होती है जिनमें  से अधिकतर कॉलेज व स्कूल मान्यता प्राप्त नही है . बची -कुची कसर  उच्च  शिक्षा में लगी आरक्षण  व्यवस्था पूरी कर रही है . दिन बर दिन शिक्षा व्यवस्था खोखली होती जा रही है .
राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता में आने के लिए जनता से वादा करती है कि बेरोजगारी भत्ता देगीं , 600 रूपए देंगी जिससे पूरे परिवार का पेट भर जायेगा , 6 गैस सिलेंडर सब्सिडी की जगह पर 9 गैस सिलेंडर पर सब्सिडी देंगी  लेकिन कोई पार्टी ये नही कहती है की जब वह  सत्ता में आयेगी  तो शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करेगी , उसे खोखला होने से बचायेगी , शिक्षा में लगे आरक्षण को हटायेगी .




 95% लाने  के बाद जंहा कुछ विधार्थी अपना बचपन खो देते है तो वहीं दूसरी ओर कुछ विधार्थी अपना जीवन .

कोई चारा नही 




अप्रैल 2010 में मुंबई के 18 वर्षीय आंसू सिंह ने कथित तौर पर इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि वह सिंगापुर  के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेना चाहता था .

2009 में 12 वीं कक्षा में 92 % अंक पाने  वाली एक अन्य  छात्रा ने आत्महत्या कर ली .वह  11 वीं मंजिल  बाल्कनी  से  इसलिए कूद गयी  क्योंकि वह  अपने पसंदीदा कॉलेज लेडी श्री राम कॉलेज में दाखिला नही ले सकी .


 95% लाने  के बाद भी उनके सपनो को पंख नही दे पते है, ये आला संस्थान .
  

95% लाने के बाद भी किसी माँ की गोद उजड़ जाती , कोई बाप अपना बच्चा खो देता है तो कोई अपना दोस्त खो देता है .

अगर हाल ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नही जब इतिहास खुद को दोहरायेगा .पुराना भारत पूरी दुनियाँ को फिर से देखने को मिलेगा माता -पिता  अपने बच्चो को पढने के लिए नही भेंजेगे .

अगर देखा जाये आज वो माता -पिता जो अपने बच्चो को पढ़ने  के लिए स्कूल  नही भेंजते सही करते क्योंकि कम से कम उनके बच्चे उनके पास तो है . 

दोस्तों आपको क्या लगता है की ये 95% अंक से किसी बच्चें के अंदर छुपे गुणों  को पहचाना जा सकता है .क्योंकि कहा जाता  है कि हर इंसान में कोई न कोई गुण जरुर होता है   

Friday 14 December 2012

आकांक्षा

आकांक्षा  यह शब्द एकमात्र  शब्द नही है . आकांक्षा यानि इच्छा , जो इंसान के पैदा होने के साथ से ही उसका दामन थाम लेती हैं और  मरने के बाद ही दामन छोड़ती हैं . 
अगर  आकांक्षा  को  हम  अपनी परछाई  कहें  तो गलत  नही  होगा क्योंकि परछाई  की तरह आकांक्षा भी  कभी  साथ नही  छोड़ती  हैं . आकांक्षा शब्द अपने आप में ही अत्यंत  महत्वपूर्ण हैं . आकांक्षा  इंसान  को  पंख  देती  हैं  अपना जीवन जीने  के लिए .  इस दुनिया रूपी  नीले आसमान  में अपने ख्वाबो  रूपी पंख से  उड़ने  का  मौका  देती हैं .

 आकांक्षा  ही  तो हैं  जो एक  आठ  माह  के बच्चे  को चलना  सिखाती हैं . आकांक्षा ही तो हैं  जो बच्चे  से  पहली बार माँ  शब्द बुलवाता हैं , आकांक्षा  ही तो हैं जो एक माँ  अपने  बच्चे  के मुख से माँ शब्द सुनने के लिए दिन बर दिन बेचैन  रहती हैं .  





इस संसार में ऐसा कौन है जो इस आकांक्षा शब्द को न जानता हो न महसूस करता हो . इस संसार में ऐसा कौन हैं जो किसी वस्तु की आकांक्षा न रखता हो . एक माँ - बाप की आकांक्षा अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य की , विधार्थियों  की  परीक्षा में अच्छे अकं हासिल करके एक अच्छी नौकरी पाने की आकांक्षा , कांग्रेस की दुबारा सत्ता पानी आकांक्षा नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री  बनने की या फिर वैज्ञानिको की दूसरे ग्रह पैर जीवन ढूढने की आकांक्षा .
अगर यह  कहा  जाये कि  आकांक्षा ही एक ऐसी वजह हैं जिसकी वजह से मानव या फिर हम अपना जीवन जीना  चाहते हैं तो कहना गलत नही होगा .
आकांक्षा ही तो वह चीज है जो मानव को अच्छे व बुरे गुण ग्रहण करने के लिए प्रेरित करता हैं .हम कहते है कि  वह इंसान बुरा है जबकि इंसान कभी बुरा नही होता हैं वो तो उसके अन्दर  के गुण बुरे होते हैं .जब किसी इंसान की  आकांक्षा पूरी हो जाती  है तब वह संतुष्ट  हो जाता और जब वही आकांक्षा पूरी नही होती तब उसे पूरा करने के लिए  बुरे गुणों तक को ग्रहण करना पंसद करता हैं . 
 अभिजीत जो 5 साल का है . उसके घर में कुछ मेहमान आने वाले थे . उसकी मम्मी ने मेहमानों के स्वागत के लिए अच्छे  अच्छे पकवान बनाएं और बाहर से मिठाई भी मंगवाई . अभिजीत को मिठाई बहुत पंसद थी जिसकी वजह  से उसने अपनी मम्मी से मिठाई मांगी लेकिन उसकी मम्मी ने देने से मना कर दिया .  अभिजीत  ने मम्मी से छुपकर मिठाई को चुराकर खाया . ये केवल अभिजीत की कहानी नही हैं हम सब बचपन में यही किया करते थे . अभिजीत की आकांक्षा केवल मिठाई खाने की थी , मांगने से नही मिली तो चुराकर खाई . इससे पता चलता है की इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकता है
.
 आकांक्षा एक तरह से भूखे पेट भजन न होए गोपाला की कहावत की तरह है जिस प्रकार इंसान भूखे पेट नही रह सकता  है ठीक उसी प्रकार इंसान अपनी आकांक्षाओं को पूरी किये बिना नही रह सकता है . इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा  किये बिना नही रह सकता है . इंसान अपनी आकांक्षा को पूरा करने के लिए जमीं आसंमा एक कर देता है .
आकांक्षा ही तो है जो रंक को राजा  और राजा  को रंक  बनाने में देर नही लगाता  हैं .  आकांक्षा ही तो है जिसने अभिनव बिंद्रा को ओलम्पिक में पदक दिलाया और कसब को फांसी  के फंदे तक पहुँचा दिया .
आकांक्षा जबतक आकांक्षा बनी रहती तबतक वह सबके  हितकर है लेकिन जब आकांक्षा महत्वकांक्षा बन जाती तब वह  विनाश को बुलावा  देती है . इसीलिए दोस्तों आकांक्षा रखे , महत्वकांक्षा नही .
दोस्तों यह तो मेरे विचार है ,मैं  आप सभी के विचार  जानना चाहती हुं कि  आप क्या मानते है- एक ऐसी आकांक्षा जो हमे गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करे ,   जिसका परिणाम बुरा हो , हमे ऐसी आकांक्षा को पूरा करना चाहिये , ऐसी आकांक्षा रखनी चाहिए .